।। चाणक्य सूत्र ।।
> मुख्य चाणक्य सूत्र <
> मुख्य चाणक्य सूत्र <
- जो बीत गया, सो बीत गया। अपने हाथ से कोई गलत काम हो गया हो तो उसकी
फिक्र छोड़ते हुए वर्तमान को सलीके से जीकर भविष्य को संवारना चाहिए।
- बहादुर और बुद्धिमान व्यक्ति अपना रास्ता खुद बनाते हैं। असंभव शब्द का इस्तेमाल बुजदिल करते हैं।
- अपनी कमाई में से धन का कुछ प्रतिशत हिस्सा संकट काल के लिए हमेशा बचाकर रखें।
- अपने परिवार पर संकट आए तो जमा धन कुर्बान कर दें। लेकिन अपनी आत्मा की हिफाजत हमें अपने परिवार और धन को भी दांव पर लगाकर करनी चाहिए।
- भाई-बंधुओं की परख संकट के समय होती है।
- स्त्री की असली परख धन के नष्ट हो जाने पर ही होती है।
- बिना कारण दूसरों के घर पर पड़े रहना कष्टों से भी बड़ा कष्ट है।
- मूर्खता बहुत से कष्टों का कारण बनती है।
- मनुष्य का विकास और विनाश उसके अपने व्यवहार पर निर्भर करता है।
- मूर्ख अपने घर में पूजा जाता, मुखिया अपने गांव में, परंतु विद्वान सर्वत्र पूजा जाता है।
- जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।
- जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।
- मूर्खता के समान यौवन भी दुखदायी होता है क्योंकि जवानी में व्यक्ति कामवासना के आवेग में कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु इनसे भी अधिक कष्टदायक है दूसरों पर आश्रित रहना।
- बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएँ, जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास हो क्योंकि गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।
- वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के समान हैं, अच्छीजिन्होंने बच्चों को शिक्षा नहीं दी। क्योंकि अनपढ़ बालक का विद्वानों के समूह में उसी प्रकार अपमान होता है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। शिक्षा विहीन मनुष्य बिना पूँछ के जानवर जैसा होता है, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे समाज को सुशोभित करें।
- अधिक लाड़ प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि वे कोई गलत काम करते हैं तो उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं है। बच्चे को डाँटना भी आवश्यक है।
- जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंद में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।
चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे पूरा करना चाहिए।
- जो लोग हमेशा दूसरों की बुराई करके खुश होते हो। ऐसे लोगों से दूर ही रहें। क्योंकि वे कभी भी आपके साथ धोखा कर सकते है। जो किसी और का ना हुआ वो भला आपका क्या होगा।
- जीवन में पुरानी बातों को भुला देना ही उचित होता है। अत: अपनी गलत बातों को भुलाकर वर्तमान को सुधारते हुए जीना चाहिए।
- अगर कोई व्यक्ति कमजोर है तब भी उसे हर समय अपनी कमजोरी का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।
- किसी भी व्यक्ति को जरूरत से ज्यादा ईमानदार नहीं होना चाहिए। बहुत ज्यादा ईमानदार लोगों को ही सबसे ज्यादा कष्ट उठाने पड़ते हैं।
- अपने ईमान और धर्म बेचकर कर कमाया गया धन अपने किसी काम का नहीं होता। अत: उसका त्याग करें। आपके लिए यही उत्तम है।
- जो व्यक्ति आपकी बीमारी में, दुख में, दुर्भिक्ष में, शत्रु द्वारा कोई संकट खड़ा करने पर, शासकीय कार्यों में, शमशान में ठीक समय पर आ जाए वही इंसान आपका सच्चा हितैषी हो सकता है।
- भगवान मूर्तियों में नहीं है, आपकी अनुभूति आपका इश्वर है, आत्मा आपका मंदिर है।
- जिस प्रकार एक सूखे पेड़ को अगर आग लगा दी जाये तो वह पूरा जंगल जला देता है, उसी प्रकार एक पापी पुत्र पुरे परिवार को बर्वाद कर देता है।
- सबसे बड़ा गुरु मन्त्र है : कभी भी अपने राज़ दूसरों को मत बताएं, ये आपको बर्वाद कर देगा।
- पहले पाच सालों में अपने बच्चे को बड़े प्यार से रखिये, अगले पांच साल उन्हें डांट-डपट के रखिये, जब वह सोलह साल का हो जाये तो उसके साथ एक मित्र की तरह व्यव्हार करिए, आपके व्यस्क बच्चे ही आपके सबसे अच्छे मित्र हैं।
- फूलों की सुगंध केवल वायु की दिशा में फैलती है, लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है।
- बहादुर और बुद्धिमान व्यक्ति अपना रास्ता खुद बनाते हैं। असंभव शब्द का इस्तेमाल बुजदिल करते हैं।
- अपनी कमाई में से धन का कुछ प्रतिशत हिस्सा संकट काल के लिए हमेशा बचाकर रखें।
- अपने परिवार पर संकट आए तो जमा धन कुर्बान कर दें। लेकिन अपनी आत्मा की हिफाजत हमें अपने परिवार और धन को भी दांव पर लगाकर करनी चाहिए।
- भाई-बंधुओं की परख संकट के समय होती है।
- स्त्री की असली परख धन के नष्ट हो जाने पर ही होती है।
- बिना कारण दूसरों के घर पर पड़े रहना कष्टों से भी बड़ा कष्ट है।
- मूर्खता बहुत से कष्टों का कारण बनती है।
- मनुष्य का विकास और विनाश उसके अपने व्यवहार पर निर्भर करता है।
- मूर्ख अपने घर में पूजा जाता, मुखिया अपने गांव में, परंतु विद्वान सर्वत्र पूजा जाता है।
- जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती, सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।
- जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है, जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ होता है।
- मूर्खता के समान यौवन भी दुखदायी होता है क्योंकि जवानी में व्यक्ति कामवासना के आवेग में कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु इनसे भी अधिक कष्टदायक है दूसरों पर आश्रित रहना।
- बचपन में संतान को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार होता है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे मार्ग पर चलाएँ, जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास हो क्योंकि गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।
- वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के समान हैं, अच्छीजिन्होंने बच्चों को शिक्षा नहीं दी। क्योंकि अनपढ़ बालक का विद्वानों के समूह में उसी प्रकार अपमान होता है जैसे हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। शिक्षा विहीन मनुष्य बिना पूँछ के जानवर जैसा होता है, इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे समाज को सुशोभित करें।
- अधिक लाड़ प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि वे कोई गलत काम करते हैं तो उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं है। बच्चे को डाँटना भी आवश्यक है।
- जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे मित्र के संबंद में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।
चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे पूरा करना चाहिए।
- जो लोग हमेशा दूसरों की बुराई करके खुश होते हो। ऐसे लोगों से दूर ही रहें। क्योंकि वे कभी भी आपके साथ धोखा कर सकते है। जो किसी और का ना हुआ वो भला आपका क्या होगा।
- जीवन में पुरानी बातों को भुला देना ही उचित होता है। अत: अपनी गलत बातों को भुलाकर वर्तमान को सुधारते हुए जीना चाहिए।
- अगर कोई व्यक्ति कमजोर है तब भी उसे हर समय अपनी कमजोरी का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।
- किसी भी व्यक्ति को जरूरत से ज्यादा ईमानदार नहीं होना चाहिए। बहुत ज्यादा ईमानदार लोगों को ही सबसे ज्यादा कष्ट उठाने पड़ते हैं।
- अपने ईमान और धर्म बेचकर कर कमाया गया धन अपने किसी काम का नहीं होता। अत: उसका त्याग करें। आपके लिए यही उत्तम है।
- जो व्यक्ति आपकी बीमारी में, दुख में, दुर्भिक्ष में, शत्रु द्वारा कोई संकट खड़ा करने पर, शासकीय कार्यों में, शमशान में ठीक समय पर आ जाए वही इंसान आपका सच्चा हितैषी हो सकता है।
- भगवान मूर्तियों में नहीं है, आपकी अनुभूति आपका इश्वर है, आत्मा आपका मंदिर है।
- जिस प्रकार एक सूखे पेड़ को अगर आग लगा दी जाये तो वह पूरा जंगल जला देता है, उसी प्रकार एक पापी पुत्र पुरे परिवार को बर्वाद कर देता है।
- सबसे बड़ा गुरु मन्त्र है : कभी भी अपने राज़ दूसरों को मत बताएं, ये आपको बर्वाद कर देगा।
- पहले पाच सालों में अपने बच्चे को बड़े प्यार से रखिये, अगले पांच साल उन्हें डांट-डपट के रखिये, जब वह सोलह साल का हो जाये तो उसके साथ एक मित्र की तरह व्यव्हार करिए, आपके व्यस्क बच्चे ही आपके सबसे अच्छे मित्र हैं।
- फूलों की सुगंध केवल वायु की दिशा में फैलती है, लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है।